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section 156/3 kya hai in hindi | Best open kanoon 2024

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section 156/3 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की एक धारा है जो अपराधिक अधिकारी को जाँच का आदेश जारी करने की अधिकतम सीमा निर्धारित करती है। इसके अंतर्गत,

( Section 156/3 ), अपराधिक अधिकारी एक अपराध की जाँच के लिए अदालत से निर्देश या आदेश प्राप्त कर सकता है। यह धारा अपराधिक अधिकारी को अपराध की जाँच के लिए प्रेरित करने का प्रावधान करती है।

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धारा 156(3) के लाभ:

  1. अपराधिक अधिकारी को अपराध की जाँच के लिए निर्देश देने का अधिकार: यह धारा न्यायिक अधिकारी को अपराध के बारे में जानकारी प्राप्त करने और जाँच करने की सुविधा प्रदान करती है।
  2. न्यायिक निर्देश का प्राप्त करने की सरलता: यह धारा लोगों को अपनी शिकायत के आधार पर न्यायिक निर्देश प्राप्त करने में सरलता प्रदान करती है।
  3. अपराधिक अधिकारी की सक्रियता बढ़ाना: यह धारा अपराधिक अधिकारी को अपराध की जाँच में सक्रियता बढ़ाने का माध्यम बनाती है, जिससे कि अपराधियों को सजा होने से बचा जा सके।
  4. समाज में विश्वास और न्याय की भावना: धारा 156(3) के द्वारा, समाज के लोगों को न्याय की भावना और विश्वास मजबूत होता है, क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी शिकायतों पर विचार किया जा रहा है।

When is Section 156/3 used in hindi

धारा 156(3) उस समय प्रयोग में लाया जाता है जब किसी अपराध के आरोप में अपराधिक अधिकारी को अपराध की जाँच के लिए आदेश देने की आवश्यकता होती है,

लेकिन कोई रिपोर्ट अदालत में नहीं दर्ज की गई है। इस धारा के तहत, किसी भी न्यायिक अधिकारी को अपराध के संदेह में संज्ञान लेते हुए जाँच के लिए आदेश जारी करने का अधिकार होता है।

यह धारा अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रारंभिक चरण में एक महत्वपूर्ण कदम होता है।

What power does the judge have in section 156 3 in hindi

धारा 156(3) के तहत, न्यायिक अधिकारी को अपराध के आरोप में जाँच के आदेश जारी करने की पूर्ण शक्ति होती है। यदि वे अपराध के संदेह में संज्ञान लेते हैं, ( Section 156/3 )

तो उन्हें आदेश जारी करने का अधिकार होता है कि पुलिस अधिकारियों को अपराध की जाँच करने के लिए निर्देशित करें। इस धारा के तहत, न्यायिक अधिकारी को समाज की सुरक्षा और न्याय की सुनिश्चित करने का कार्य होता है।, ( Section 156/3 )


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वे अपराध के विशेष स्वरूप और प्रस्तुत परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेते हैं कि क्या जाँच की आवश्यकता है और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए क्या कदम उठाना चाहिए।

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section 156/3 rule in hindi

  1. न्यायिक अधिकारी को अदालत में किसी भी अपराध के आरोप में अधिकार नहीं होता है, लेकिन अगर उन्हें किसी अपराध के संदेह की जानकारी मिलती है, तो वे अपराध की जाँच के आदेश जारी कर सकते हैं।
  2. धारा 156(3) के तहत न्यायिक अधिकारी अपराध की जाँच के आदेश जारी करते समय यह ध्यान देना चाहिए कि अधिकार का उपयोग केवल जरूरी स्थितियों में ही किया जाना चाहिए और यह उचित तथा योग्य होना चाहिए।
  3. अपराध की जाँच के आदेश जारी करने पर, न्यायिक अधिकारी को आदेश को समय-समय पर मूल्यांकन करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि अपराधिक अधिकारी जाँच को संबंधित तथा प्रभावी ढंग से पूरा करे।
  4. यह धारा समाज की सुरक्षा और न्याय की सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है और इसका उपयोग समय-समय पर उचित तथा योग्य परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।

Is an affidavit necessary in section 156/3 in hindi

हाँ, धारा 156(3) के अंतर्गत अपराध की जाँच के आदेश जारी करने के लिए एक शपथपत्र (affidavit) की आवश्यकता हो सकती है। शपथपत्र एक विधिक दस्तावेज़ होता है

जिसमें व्यक्ति या व्यक्तियों की सच्चाई या सत्यता की पुष्टि की जाती है। यह उस संदर्भ में उपयोग किया जाता है जब किसी न्यायिक अधिकारी को अपराध की जाँच के आदेश जारी करने के लिए सटीक और प्रमाणित जानकारी की आवश्यकता होती है।

शपथपत्र एक साक्षात्कार के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है जिसमें विधि अधिकारी अपराध की जाँच से संबंधित जानकारी की पुष्टि करते हैं। इससे अपराध की जाँच प्रक्रिया में न्यायिक अधिकारी को आधिक सत्यापन और विश्वास की प्राप्ति होती है।

section 156/3 and crpc 202 difrence in hindi

धारा 156(3) और धारा 202 क्रिमिनल प्रक्रिया संहिता में अलग-अलग धाराएं हैं और उनका उपयोग भिन्न परिस्थितियों में किया जाता है। यहाँ, हिंदी में दोनों धाराओं के बीच अंतर का वर्णन है:

धारा 156(3):

  • यह धारा क्रिमिनल प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत आती है।
  • धारा 156(3) के अंतर्गत, अदालत को अपराध के संदेह में संज्ञान लेते हुए अपराध की जाँच के आदेश जारी करने की अनुमति होती है।
  • यह धारा पुलिस अधिकारियों को अपराध की जाँच के लिए निर्देश देने का अधिकार प्रदान करती है।
  • इसका उपयोग अपराध के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई के लिए किया जाता है।
  1. धारा 202:
    • यह धारा भी क्रिमिनल प्रक्रिया संहिता, 1973 में है।
    • धारा 202 के अंतर्गत, अदालत को किसी अपराध के संदेह में संज्ञान लेते हुए स्वतंत्र जांच की आवश्यकता होने पर आदेश जारी करने की अनुमति होती है।
    • इसका उपयोग अपराध के संदेह में न्यायिक अधिकारी के द्वारा विचार किए गए सभी प्रमाणों या तत्वों की जाँच करने के लिए किया जाता है।
    • इसका उपयोग अपराधियों के खिलाफ संदिग्धता के मामले में भी किया जा सकता है, जहां प्रमाणों की जाँच और पुनर्विचार की आवश्यकता होती है।

संक्षेप में कहें तो, धारा 156(3) अपराध की जाँच के आदेश जारी करने के लिए होती है, जबकि धारा 202 अदालत को स्वतंत्र जांच के आदेश जारी करने के लिए होती है।, ( section 156/3 )

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